Friday, April 3, 2020

डर का भगवान

हाल ही में एक यात्रा पर मेरी मुलाकात दिलिप से हुई जिसका लालन पालन भारत में हुआ था लेकिन वह बहुत वर्षों से पश्चिम में रह रहा था। वह यहां भारत अपने किसि निजी काम से आया था। वह खुले रूप से कुछ काफी समय से मन में चल रहे सवालों से जूझ रहा था जो उसके उन विश्वासों से जुड़े थे जब वह बड़ा हो रहा था। उसने यह बताया कि उसके क्षेत्र के हिन्दू इस बात से डरते थे कि अगर उन्होने नियमित रूप से और ठीक प्रकार से अपने गाँव के देवताओं को संतुष्ट नहीं किया , तो देवता और देवियाँ परेशान हो जाएंगे और इसके कारण उनके जीवन में नकारात्मक घटनाएँ घटेंगी। इसलिए , उन्हे व्यस्त रखा जाता था उन बहुल देवताओं का तुष्टीकरण करने में , जिनकी पीढ़ियों से पूजा की जा रही थी। इस प्रकार की पूजा के पीछे जो आधार है वो डर है, विशेष तौर से अगर हम अपने अनुष्ठान संबंधी दायित्वों में चूक करेंगे , हमें दंडित होना पड़ेगा या फिर हम किसी तरह से पीड़ा पाएंगे.

मेंने दिलिप को आश्वासन दिया की हिंदूइज़्म के महान भगवान क्रोध, पीड़ा पहुंचाना, न्याय , प्रतिशोध या संकीर्णता की चेतना में नहीं रहते।वे प्रेम एवं प्रकाश के प्राणी हैं , हम पर अपना आशीर्वाद बरसाते हैं , बावजूद इसके कि हम असफल हों, कमजोर हों या हम में और कमियाँ हों। इस विश्वास की मूल भूत भावना को रखते हुए , हिंदूइज़्म एक आनंद पर आधारित धर्म है , जिसमे किसी को भगवान से कभी भी डरने की आवश्यकता नहीं है , इस बात के लिए कभी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है कि अगर हम पूजा नहीं करेंगे तो भगवान आहत हो जाएंगे या हमें किसी तरह की सजा देंगे। पूजा उच्चतम मायनों में प्रेम का बाहर निकल कर बहना है। भगवान प्रेम हैं और कुछ और नहीं परंतु प्रेम हैं.
दिलिप नें मुझे अपने गाँव के विश्वास के बारे में और अधिक बताया। जब नकारात्मक घटनाएँ घटती हैं, जैसे कि बच्चे कि मौत , बाढ़ या अचानक बीमारी, बड़े लोग जरूरी अनुष्ठानों में हुई कमियों को ढूंढते हैं , यह मानते हुए कि देवता उनसे हुई पूजा के किसी पहलू की कमी के लिए दंडित कर रहे हैं। उसने आशा की कि भगवानों कि प्रकृति कि बेहतर समझ से ऐसे अंधविश्वासों पर काबू करने में मदद मिलेगी।

एक चिंताजनक स्थिति स्वयं के द्वारा पैदा किया गया दुर्भाग्य है और भगवान द्वारा दिया गया दंड नहीं है। जीवन स्वयं, जो द्वंद के दायरे में घट रहा है, प्राकृतिक शक्तियों के खेल का एक मैदान है , एक कक्षा है शरीर को धारण किए हुए आत्माओं की जो आनंद और दुख का , उत्साह और अवसाद , सफलता और विफलता, स्वास्थ्य और बीमारी , अच्छे और बुरे समय का अनुभव करते हैं.वे आध्यात्मिक प्राणी जो चेतना के गहरे स्तरों में रहते हैं , शरीर में रहने वाली आत्माओं को संसार की यात्रा के दौरान सहायता देनें के लिए सदेव उपलब्ध रहते हैं। पुजा अनुष्ठान उन्हें संतुष्ट करने या उनके गुस्से को शांत करने हेतु नहीं किए जाते बल्कि उनके प्रति प्रेम व्यक्त करने एवं उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेने का आवाहन करने हेतु किए जाते हैं.